किस पत्नी ने पति को रक्षा सूत्र बाँधकर की थी राखी की शुरुआत..

दोस्तो राखी आ रही है सभी राखी को बड़ी ही खुशियों से मनाते हैं । भारत अतुल्य देश है और इसके त्योहार भी ऐसे ही अतुलनीय ही है । एक दूसरे की भावनाओंतों समर्पण त्याग ये सब इन त्योहारों के पीछे होते है। राखी जैसा कि आप जानते ही हैं कि भाई बहन के पवित्र प्रेम को समर्पित है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, और भाई उन्हें उनकी रक्षा करने का वचन देता है | मिठाई खिलाई जाती है। सुंदर सुंदर राखियां आज पूरे भारत में कहीं भी मिल जायेगी । दोस्तों राखी की तैयारी भी लोग कई महीनों पहले शुरु कर देते हैं । इस दिन बहनें भाई को राखी बांधती है। उन्हें मिठाई खिलाती हैं | फिर भाई बहनों को गिफ्ट देते है साथ ही यह वचन भी देते है, की वह उनकी रक्षा आजीवन करेंगे। बस हमें यही सब पता है, पर आज हम आपको कुछ ऐसे तथ्यों साए अवगत कराने जा रहे है जो राखी से जुड़े होने पर भी आपको शायद नहीं पता होंगे। कुछ ऐसी दिलचस्प बातें….

2017 की राखी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी-

इस बार राखी अपने साथ खुशियां तो ला रही है साथ ही

  • 7 अगस्त को सवेरे 11:07 से 1:50 बजे तक रक्षा बंधन का सही मुहूर्त है ।
  • इस दिन चंद्र ग्रहण होगा। 10:52 से शुरु होकर 12:22बजे तक रहेगा।
  • चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक लग जायेगा।
  • चंद्र ग्रहण पूर्ण न होकर खंडग्रास होगा।
  • इस योग में राखी बांधना शुभ नही होता।
  • इस समय कोई शुभ काम नहीं होगा मंदिर भी बंद रहेंगे । केवल मंत्र जाप चलता रहेगा।

वास्तव में राखी क्यों मनाई जाती है



 

->इंद्राणी ने बांधा था इंद्र को रक्षा सूत्र – एक बार की बात है देव और दानवों में युद्ध शुरु हो गया, युद्ध में देवों पर दानव हावी होने लगे। जिससे इन्द्र देव घबरा कर बृ्हस्पति के पास गये। जब इन्द्राणी को इस बारे में पता चला तो उन्होने ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से अभिमंत्रित कर उसे पवित्र कर इसे देवराज के हाथ पर बांध दिया । जिस दिन यह कार्य किया उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था।  तब देवराज ने अपने ऊपर आये उस संकट को टाला था और युध्द में विजय हुए थे । उसी दिन से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन यह प्रथा चली आ रही है।

->इतिहास में राखी का महत्वपूर्ण स्थान- इतिहास में  जाकर देखें तो इस त्योहार की शुरुआत लगभग 6 हजार साल पहले हुई थी। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास में हमें मिल जायेंगे। इसकी शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के मध्य युध्द चल रहा था, तब चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के शासक बहादुर शाह से अपनी और अपने राज्य की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा करने का वचन दिया था। उन्हें बहन का दर्जा दिया और पूर्णत सम्मानित किया।

->रक्षा बन्‍धन  क एक खास मंत्र है

येन बध्दो बलि राजा , दांवेंद्रो महाबल:। तेन त्वां प्रतिब्ध्रामि,रक्षे! मा चल!!

इस मंत्र के पीछे भी एक रोचक कथा है । वह कुछ इस प्रकार है, राजा बलि की दान वीरता काफी माननीय थी उनकी परीक्षा लेने के लिये विष्णु ने वामन का रूप धर कर राजा बलि से वामन अवतार में कुछ माँगा तो राजा बलि ने प्रसन्न होकर जो चाहे माँगने को कहा वामन ने तीन पग भूमि मांगी । राजा बलि उनके मन के भाव को भाप गये और उन्हें तीन पग भूमि देने का वचन दिया। वामन भगवान ने जब एक पग से स्वर्ग और दूसरे से पृथ्वी माप दी तीसरे पग को रखने के लिये जगह नहीं रही तब राजा बलि ने कदम अपने शीश पर रखने को कहा राजा के ऐसी भक्ति भाव और दानवीरता से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा बलि ने उनसे वचन ले लिया कि वह उनके साथ पातल में रहे ।  उनके साथ पाताल लोक में रहने की भगवान को उनकी बात रखनी पड़ी और उनके साथ पाताल में रहने लगे । अब लक्ष्मी जी को जब पता चला तो वह काफी खिन्न हो गई । अब वह सोचने लगी कि भगवन् को इस वचन से कैसे मुक्त किया जाये । उन्होंने एक उपाय किया वह  वेष बदलकर रक्षा सूत्र लेकर बलि के पास गई और सावन पू्र्णिमा के दिन रक्षा सूत्र बांध कर उन्हें भाई बनाया । जब वह भाई बन गये तो राखी के बदले जब उपहार माँगने को कहा तो देवी ने उनसे विष्णु को अपने वचन से मुक्त करने को कहा वापिस वैकुण्ठ ले जाने का आग्रह किया । बलि ने भगवान को वचन से मुक्त कर दिया ।तब वह विष्णु भगवान के संग वापिस वैकुण्ठ लौट आई। इस प्रकार रक्षा सूत्र का काफी महत्व माना जाता है ।

->महाभारत के अनुसार- महाभारत के अनुसार एक बार जब भगवान कॄष्ण पांडवों के साथ पतंग उड़ा रहे थे, तो उनकी ऊँगली कट गई   और उसमें से रक्त बहने लगा। पांचाली ने जब यह देखा तो उसने अपनी साड़ी का छोर फाडकर कॄष्ण की उंगली पर बांध दिया । पाँचाली के इस अतुलनीय प्रेम को देख कर बदले में कॄष्ण ने उन्हें उनकी रक्षा करने का वचन दिया, और जब भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था तो वही छोर भगवान ने इतना बड़ा कर दिया की दुशासन उसे हरण नहीं कर पाया । भगवान ने द्रौपदी के सम्मान की रक्षा की और द्रौपदी के चीर हरण होने सें बचाया । तब से भी रक्षा सूत्र का काफी महत्व माना जाता है।

->भारत में राखी के रंग अनेक -भारत में कई स्थानों पर राखी को अलग -अलग रूप में अलग -अलग ढंग से मनाया जाता है । राजस्थान में इसे इद्रराम्राखी  कहते हैं। वहां पर भाई की पत्नियों को चूड़ा राखी बाँधने की रीति है। चूडा राखी भाभी की चूडियों में व राम राखी केवल भगवान को बांधी जाती है। रेशम के धागे से ऐसी राखियां बनाई जाती हैं| इन्हें बाँधने से पहले कच्चे दूध से अभिमंत्रित करके फिर बांधा जाता है। इसके बाँधने के बाद ही सब भोजन करते हैं |

->अन्य राज्यों में राखी के अलग रंग-  ऐसे ही उतरांचल में इसे श्रावणी नाम से मनाया जाता है । भारत में जगह बदलने के साथ ही पर्व को मनाने का ढंग भी बदल जाता है,  इसी कारण से तमिलनाडू, केरल और उडीसा के दक्षिण में इसे अवनि अवितम के रुप में मनाया जाता है। इसे हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से पहले तक श्री हरि झुले में दर्शन देते है, परन्तु राखी के दिन से ये दर्शन समाप्त होते है। आपको बता दे कि अमरनाथ की यात्रा भी इसी दिन समाप्त होती है।

राखी का एक संदेश आपके लिये-



दोस्तों ये तो हुई भाई बहन की बात उनके प्यार की बात आज हम राखी का त्योहार कुछ अलग ढंग से भी मना सकते है । यह सिर्फ भाई बहन का नहीं हर रिशते के साथ हम यह निभा सकते है । जिसे हम बेहद प्रेम करते है । हर किसी कि रक्षा के लिये हम यह त्योहार मना सकते हैं।  आज के समय में हमें अपने सबसे आवश्यक मित्रों की रक्षा के लिये उन्हें रक्षा सूत्र बांधन चाहिये तात्पर्य यह है कि हम वृक्षों की रक्षा करें वृक्ष लगाये । आने वाले समय में वृक्षों की इतनी कमी हो जायेगी जिससे जीवन संकट में आ जायेगा। तो दोस्तों यदि हर पर्व ना सही पर कुछ खास अवसरों पर हम एक वृक्ष लगाकर उसका पालन पोषण करें तो यह आप अपने आने वाले जीवन को सुरक्षित कर लेते हैं। यह एक गहरी बात है इस पर विचार जरुर करिये।

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