पांडवों ने आखिर क्यों खाया था अपने पिता का मांस

दोस्तों हिंदू धर्म और इसकी मान्यताएँ अपने आप में मिसाल हैं । हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ और उनसे जुड़े किस्से कहानियों को हम जितना जानने की कोशिश करते हैं ये उतने ही ज्यादा गहराई में चले जाते हैं । आज हम बात कर रहे हैं महाभारत की, हम सब इसके बारे में जानते ही हैं इससे जुड़े किरदार, उनकी बातें, वरदान, श्राप आदि बहुत सी चीजें हैं, जो हम सब जानते हैं । पर अभी भी काफी कुछ ऐसा है जो हम नहीं जानते या यूँ कहिये कि उनका कभी जिक्र ही नहीं हुआ, पर ये बातें काफी महत्वपूर्ण हैं । जिन्हें जानकर आप भी चौंक जायेंगे । आज हम आपको उन्हीं बातों में से महाभारत की एक बात बताते हैं कि पांडवों की आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी जो उन्हें अपने ही पिता का मांस खाना पड़ा ।




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-> पांडु को मिला था श्राप – एक बार राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों के साथ आखेट पर गये थे । वहां उन्होंने एक मृग को देखा वह मैथुनरत  था, पांडु ने उस पर बाण साध दिया । वह बाण से घायल होने पर अपने असली रूप में आया वास्तव में वह ॠषि किदम्ब थे । उन्होंने क्रोध वश अपने अंतिम समय में राजा को श्राप दिया कि जिस प्रकार मैथुनरत अवस्था में तूने मुझे मृत्यु को सौंपा है। उसी प्रकार जब भी तुम इस अवस्था में होगे तुम भी मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे । इस प्रकार पांडु को ॠषि का यह श्राप मिला था जिससे वह काफी दुखी हुए ।

-> पांडु ने दुखी होकर छोड़ा राजपाठ – जब महाराज पांडु को श्राप मिला कि यदि वह अपनी पत्नी या किसी भी स्त्री से सम्भोग करेंगे तो उनकी मृत्यु हो जायेगी तो वह काफी दुखी हुए और इसी कारण उन्होंने अपना सारा राजपाठ त्याग दिया और अपनी दोनों रानियों सहित वन में रहने चले गये थे ।

-> कुंती को मिला था वरदान – कुंती के कुँवारेपन में दुर्वासा ॠषि ने उनकी सेवा भावना से प्रसन्न होकर उन्हें एक मंत्र दिया था । वह मंत्र उनके लिये किसी वरदान से कम नहीं था । उस मंत्र के आह्वन से वह किसी भी देवता को बुला सकती थी और उनसे संतान प्राप्त कर सकती थी ।

-> पांच पांडवों का जन्म – यह समस्या बनी हुई थी कि पांडु को यदि संतान प्राप्त नहीं हुई तो उनका वंश कैसे चलेगा । तब रानी कुंती ने उन्हें बताया कि उन्हें यह वरदान मिला है। तब वह महाराज पांडु की आज्ञा से देवताओं का आह्वान करके पाँच पुत्रों को पा लेती हैं, जिन्हें पाँच पांडव कहा गया । उन पांचों पांडवों में से युधिष्ठर, भीम व अर्जुन माता कुंती की संतान थे और नकुल व सहदेव माता माद्री की संतान थे ।

-> पांडु करना चाहते थे अपने गुणों को अपनी संतानो में स्थानांतरित – लेकिन महाराज पांडु चाहते थे कि उनकी संतानों में उनके गुण स्थानांत्रित हों परंतु दोनों के संभोग से ही यह पूर्ण हो सकता था और वह श्राप की वजह से संभव नहीं था । क्योंकि वह पुत्र ना तो कुंती के गर्भ से और ना ही पांडु के वीर्य से उत्पन्न हुए थे तो जाहिर सी बात है कि उनके गुण भी उनमें स्थानांत्रित नहीं हुए इसलिये वह चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चे उनका मांस खायें । तब पिता की इच्छानुसार पाँचों पांडवों ने पिता का मांस खाया ।

->सहदेव को हुआ  ज्ञान – सहदेव को अस्त्रों शस्त्रों का तो ज्ञान था ही साथ ही वह सबसे बुद्धिमान भी थे । वह चिकित्सा में भी निपुण थे । सहदेव को कई भाषाओं का भी ज्ञान था । अपने पिता के मांस में से सहदेव ने मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये थे पहला हिस्सा खाने पर वर्तमान काल का दूसरा हिस्सा खाने पर भूतकाल का व तीसरा हिस्सा खाने पर उन्हें भविष्य का ज्ञान हुआ । कहा जाता है कि महाभारत काल में कॄष्ण के अलावा सहदेव ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें महाभारत के युद्ध के बारे में और आगे की सारी घटनाओं के बारे में पहले से ही सब पता था ।

कहानियां तो और भी कई हैं ऐसी जिनके बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकते पर अभी के लिये सिर्फ इतना ही । जल्द ही आपको उन कहानियों के बारे में भी बतायेंगे ।




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अपना कीमती समय देने के लिये धन्यवाद ।

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