गणेश जी से जुड़े कुछ अद्भुत रहस्य – ganesh bhagwan ke rahasya

गणपति बप्पा मौर्या – गणपति जी (ganesh bhagwan) विघ्नहर्ता, दुखहर्ता हैं । सभी धार्मिक कार्यों को करने से पहले गणपति जी की पूजा की जाती है । इन्हें मोदक, लड्डू और केले बहुत प्रिय हैं और ये अपने भक्तों से जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश जी का अनोखा मनमोहक रूप सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है । गणेश जी से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो काफी कम लोगों को पता है, जिन्हें हम आज आपको बताने जा रहे हैं, तो शुरुआत करते हैं गणेश जी के अंगों से । गणेश जी के सभी अंगों का अपना अपना महत्व है ।




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  • बड़े बड़े कान – गणपति जी के बड़े बड़े कानों का रहस्य यह है कि वह सबकी सुनते हैं पर निर्णय अपनी बुद्धि से लेते हैं । बड़े कान इस ओर भी इशारा करते हैं कि बुरी बातों को त्याग कर या ना सुन कर अच्छी बातों को अपने कानों में डालना चाहिये । इसके साथ ही बड़े कान वाले व्यक्ति दीर्घायु के भी होते हैं ।
  • बड़ा  मस्तक – बड़े मस्तक से भाव यह है कि उनके विचार बड़े हैं । वह कुशाग्र बुद्धि के व नेतृत्व करने में हमेशा आगे होते हैं ।
  • लम्बी सूँड – गणपति जी की लम्बी सूँड दूर से ही विकारों को पहचान लेती है अर्थात आने वाले संकट का उन्हें पहले ही पता चल जाता है ।
  • छोटी आँखें – उनकी छोटी आँखें चिंतशीलता की निशानी हैं । हर चीज को वह काफी सूक्ष्मता से देखते हैं ।
  • टूटा दाँत – गणपति जी का टूटा दाँत उनकी बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है। इसी से उन्होंने महाभारत ग्रंथ लिखा था ।
  • मोटा सा उदर – मोटा उदर यानि खुशहाली । गणेश जी काफी खुशमिजाज एवम्‌ खाने के शौकीन हैं यह इस बात की ओर भी संकेत करता है कि वह अपनी सूझ बूझ के साथ बातों को अपने पेट में पचा लेते हैं भाव यह है कि ऐसे लोग काफी सूझ बूझ वाले होते हैं ।

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-> गणपति जी कैसे बने गण से गणेश (ganesh bhagwan ki kahani)- कैलाश पर सभी गण भगवान शिव की आज्ञा का पालन करते थे । उनके लिये भगवान शिव की आज्ञा सर्वोपरी थी । माता पार्वती ने जब नंदी गण को एक काम करने की आज्ञा दी तो अज्ञानता वश उसमें उससे चूक हो जाती है तब पार्वती जी यह सोचने लगीं कि सब केवल शिव की ही आज्ञा का पालन करते हैं उनकी भी आज्ञा ऐसे ही कोई माने । इस पर उनकी दो सखियों जया और विजया ने गण बनाने को कहा तब पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने शरीर से उतरे उबटन से गण को बनाया और उसमें जीवन डाल दिया और फिर उसे आज्ञा दी कि चाहे कोई भी हो किसी को भी अंदर मत आने देना । गण ने ऐसा ही किया शिव जब माता से मिलने के लिये आये तो गण ने उन्हें अंदर ना जाने का नम्र निवेदन किया । जब वह नहीं माने तो वह शिव जी से युद्ध करने को तैयार हो गये और फिर शिव जी ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया । फिर माता पर्वती यह देखकर अपने विकराल रूप में आ गयीं और शिव से उन्होंने गण को जिंदा करने को कहा ।  तब हाथी का सिर गण के सिर की जगह लगाकर गण को जीवित किया गया और तभी से उन्हें गणेश नाम से जाना जाने लगा ।

-> गणेश जी के शरीर के दो रंग हैं शुभता के प्रतीक (ganesh bhagwan ke do rang) – गणेश भगवान जी के शरीर के दो रंग हैं । जिनमें से लाल रंग समृद्धि का और हरा रंग शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जहां गणेश जी के ये दो रंग होते हैं वहां शक्ति और समृद्धि दोनों का वास होता है ।

-> जब शनि देव की दॄष्टि पड़ी गणेश पर तो क्या हुआ (ganesh bhagwan ka sir kyun kata)- एक समय की बात है, माता पार्वती ने जब गणेश जी को उपवास रखकर पाया था । और सभी देवता उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे तब शनिदेव ही ऐसे थे जो सिर झुकाये खड़े थे माता पार्वती ने उनसे गणेश को आशीर्वाद देने को कहा तो शनिदेव ने उन्हें कहा कि हे माँ मेरी सीधी दृष्टि जिस पर पड़ती है उसका अहित हो जाता है । इस कारण मैं गणेश जी को नहीं निहार सकता । तब माता ने उन्हें कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा और माता के कहने पर शनिदेव उन्हें देख लेते हैं । ऐसा माना जाता है कि उन्हीं की दॄष्टि के कारण गणेश जी का सिर कट गया था ।

-> गणेश जी हैं एक अच्छे लेखक (ganesh bhagwan is a writer)- गणेश जी संकटहर्ता तो हैं ही साथ ही वह एक अच्छे लेखक भी हैं । उन्होंने महाभारत को लिखा है । महाभारत की रचना बेशक वेदव्यास जी ने की है लेकिन लिखा उसे गणेश जी ने है। इसे लिखने के लिये गणेश जी ने यह कहा था कि इसे वह बिना रुके लिखना चाहते हैं इस पर वेदव्यास जी ने कहा कि आप हर श्लोक को पढ़ें उसका अर्थ समझें उसके बाद लिखें । श्लोक का अर्थ समझने में गणेश जी को जो समय लगता था । उस बीच वेदव्यास जी अपने काम पूरे कर लेते थे ।

-> गणपति जी एकदंत कैसे बने (ganesh bhagwan ekdant kese bane)- भगवान गणेश जी को एकदंत भी कहा जाता है । इसके पीछे भी एक रोचक कथा है जो इस प्रकार है । एक बार भगवान परशुराम जो शिव के परम भगत थे वो उनके दर्शन हेतु कैलाश पर पहुँच गये । वहां शिव तपस्या में लीन थे । जब परशुराम ने गणेश से शिव के दर्शन करने को कहा तो उन्होंने उनका रास्ता रोक लिया इस पर परशुराम को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने फरसे से गणेश जी पर वार किया वह फरसा शिव ने परशुराम को दिया था  इसलिये गणेश जी नहीं चाहते थे कि उनका वार खाली जाये इसलिये उन्होंने वह वार अपने दाँत पर झेल लिया । इसीलिये ganesh bhagwan का एक दाँत टूट गया और वह एकदंत कहलाये ।

-> गणपति पूजन में तुलसी क्यों वर्जित है (ganesh ji ki pooja mein tulsi kyun nahin use karte)- एक बार गणेश जी विवाह से बचने के लिये तपस्या कर रहे थे । तभी तुलसी वहां आई और वह गणेश जी के सुंदर शरीर पर मोहित हो गई । गणेश जी की तपस्या भंग करने लगी वह गणेश जी से विवाह करना चाहती थी । गणेश जी की तपस्या भंग हुई तो उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने तुलसी को श्राप दिया कि अगले जन्म में तुम एक पौधा बनोगी और एक असुर से तुम्हारा विवाह होगा । तुलसी ने भी अकारण श्राप देने की वजह से रुष्ट होकर गणेश को श्राप दिया कि जिस फल को प्राप्त करने के लिये तुम ये तपस्या कर रहे हो वह पूरा ना हो और तुम्हारी जल्द ही दो शादियां हो । इसीलिये गणपति जी की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती। इसके बाद ही गणेश जी की दो शादियां हुईं रिद्धि और सिद्धी के साथ । फिर उनके दो पुत्र शुभ और लाभ भी हुए ।




-> गणपति के इन अंगों के दर्शन नहीं करने चाहिये (ganesh bhagwan ke rahasya)- गणपति जी के कुछ अंगों को आभूषणों व वस्त्रों से ढक कर रखा जाता है ताकि इन पर किसी की नजर ना पड़े आप भी जब गणपति जी की पूजा करें तो इन बातों का ध्यान रखें । यदि यह गलती से दिख भी जाये तो घबराये नहीं गजानन को लड्डू का भोग लगाकर उनसे क्षमा माँग लें ।

  • पीठ – गणपति की पीठ में दरिद्रता का वास होता है इसलिये गणपति की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिये ।
  • नाभि – गणपति की नाभि के दर्शन से  मानसिक विकार आते हैं । यह मन को अशांत कर देते हैं । इसी कारण गणपति की नाभि के दर्शन नहीं करने चाहिये।
  • कंठ – गणपति के कंठ के दर्शन से कंठ के रोग हो सकते हैं, इसलिये इनके कंठ को भी नहीं देखना चाहिये ।

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-> मूषक ऐसे बने गणपति की सवारी (ganesh bhagwan ki sawari chuha kese bana)- गणपति जी की सवारी यानि के मूषकराज अपने पूर्व जन्म में एक गंधर्व था । जिसका नाम क्रोंच था । राजा इंद्र ने एक बार एक सभा बुलाई। जिसमें क्रोंच का पैर गलती से वामदेव पर पड़ जाता है । वामदेव ने यह सोचकर उन्हें श्राप दे दिया कि उसने वह जानबूझ कर शरारत की इसलिये वह उसे मूषक बनने का श्राप दे देते है । वह मूषक इतना विशालकाय बन जाता है कि हर तरफ सब बर्बाद कर देता है | ऐसे ही एक दिन वह पराशर मुनि के यहां पहुँच जाता है । अपनी नीति अनुसार उसने वहां भी तबाही मचा दी बर्तन तोड़ दिये । वृक्ष, बाग, फल सब तहस नहस कर दिये संयोंग से वहां उस समय गणपति जी आये हुये थे । मुनि ने जब सारी बात गणेश जी को बताई तो गणपति जी ने मूषक को सबक सिखाने के लिये अपना पाश उस पर फेंका ।

अब पाश से बचते बचते मूषक पाताल तक पहुँच गया और अंत में वह उसके गले में अटक जाता है और मूषक को अपने साथ लेकर गणपति के पास आ जाता है । मूषक बेहोश हो जाता है । जब उसे होश आता है तो वह गणपति से क्षमा याचना करता है । गणेश जी उससे कहते हैं कि उनका जन्म संतों साधुओं की रक्षा के लिये ही हुआ है और उस जैसे उत्पातियों को दंड देने के लिये हुआ है । परंतु वह शरण में आये हुए को भी माफ कर देते हैं । इसलिये माँगों क्या माँगते हो तब वह अहंकार से भरे मूषक ने कहा मुझे तो कुछ नहीं चाहिये किंतु यदि आपको चाहिये तो मैं कुछ भी दे सकता हूँ । उसके अहंकार को तोड़ने के लिये गणपति जी उसे अपनी सवारी बनने को कहते हैं | तब मूषक उन्हें तथास्तु कह कर अपनी पीठ पर बैठा लेता है। गणपति के वजन से मूषक की जान पर बन आई थी तब उसका अहंकार टूट गया और उसने गणपति से निवेदन किया कि वह अपने वजन को उसके अनुसार कर लें और उसे क्षमा कर दें । तब गणपति जी प्रसन्न होकर उसे हमेशा के लिये अपनी सवारी बना लेते हैं ।




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अपना कीमती समय देने के लिये धन्यवाद ।

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